आंकड़े सम्भावना ट्रस्ट क्लीनिक द्वारा किये गए अध्ययन के आधार पर :
दैनिक जीवन में इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों में मौजूद जहरीले रसायनों का अध्ययन किया गया।
अध्ययन का उद्देश्य:
- इस बारे में जानकारी हासिल करना कि अलग-अलग आर्थिक स्थिति के परिवार किस-किस ब्राण्ड के कौन-कौन से उत्पाद कितनी-कितनी मात्रा में रोजाना इस्तेमाल कर रहे हैं।
- इन उत्पादों में कौन-से जहरीले रसायन मौजूद हैं।
- रोजाना इस्तेमाल की चीजों में मौजूद जहरीले रसायनों से मानव स्वास्थ्य पर कौन-से दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं।
अध्ययन विधि:
इस अध्ययन के लिए व्यक्तिगत सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया। इसके अन्तर्गत सर्वेक्षणकर्ताओं ने अलग-अलग परिवारों में जाकर उनके सदस्यों से एक प्रष्नावाली के आधार पर कई प्रश्न पूछे और उनके उत्तर दर्ज किए। उत्तरों में प्रस्तुत आँकड़ों का फिर विश्लेषणकिया गया और नतीजे निकाले गए।
परिवारों का चयन:
इस अध्ययन के लिए 17 मोहल्लों के 200 परिवारों को लिया गया, जिनमें निम्न, मध्यम एवं उच्च वर्ग के परिवार शामिल थे। इन तीनों वर्गों में लगभग समान संख्या में परिवारों के चयन के साथ सर्वेक्षण हेतु 10 प्रश्नों की एक प्रश्नावली तैयार की गई। जिसमें घरों में इस्तेमाल होने वाले उत्पाद, उनके ब्राण्ड के नाम, माह में खपत, कीमत एवं परिवार में इस्तेमाल करने वाले सदस्य, उनकी उम्र व लिंग की जानकारी दर्ज करने की व्यवस्था की गई। इस प्रश्नावली में 20 परिवारों की जानकारी दर्ज कर यह देखा गया कि प्रश्नावली व्यावहारिक तौर पर ठीक बनी है या नहीं। तत्पश्चात इसमें आवश्यक सुधार कर 200 परिवारों में सर्वेक्षण पूरा किया गया।
बच्चों ये पानी ज़हरीला है

200 परिवारों के 229 बच्चे पीने का पानी स्कूल ले जाने के लिए प्लास्टिक की बोतल का इस्तेमाल करते हैं। जिनमें विभिन्न आयवर्ग के 69(30%) साधारण प्लास्टिक बोतल का 142(62%) बच्चे पीइटी प्लास्टिक की बोतल और 18 (8%) बच्चे अन्य प्रकार की प्लास्टिक बोतल का इस्तेमाल करते हैं। प्लास्टिक की इन बोतलों में पालिइथाईलीन टेरिथेलेट (PET) नामक रसायन पाया जाता है, जिसमें कैंसर कारक तत्व होते हैं। इस रसायन को डायइथाइल हायड्रोक्सिलएमीन (DEHA) के नाम से भी जाना जाता है। प्लास्टिक की बोतलों में एक अन्य रसायन बिस्फेनाल भी पाया जाता है
जो अत्यंत ही घातक है।
जि़न्दगी में ज़हर घोलता बिस्फेनाल
पीने के पानी की प्लास्टिक की बोतलों में बिस्फेनाल नामक जो घातक रसायन पाया जाता है, वह उन सैकड़ों रसायनों में से एक है जो हमारे रोज की जि़न्दगी में इस्तेमाल होते हैं और जिसका इन्सानी स्वास्थ्य पर और खासकर बच्चों और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर बहुत गम्भीर असर पड़ता है। यूँ तो इस रसायन को सबसे पहले 1891 में एक वैज्ञानिक ने बनाया था पर इसका औद्योगिक उत्पादन 1957 से ही शुरु हुआ। इस रसायन का उपयोग खासकर पालीकार्बोनेट प्लास्टिक जो काँच सा पारदर्शी और कड़ा होता है, बनाने के लिए लिए किया जाता है। इसके साथ ही इस रसायन का इस्तेमाल थर्मल पेपर बनाने (जिनमें रसीद छापी जाती है ) भोजन व पेय पदार्थों के डिब्बों के लिए भी किया जाता है। बिस्फेनॅाल-ए युक्त पालीकार्बोनेट प्लास्टिक से बच्चों के दूध की बोतलें, पानी की बोतलें, सी.डी., डी.वी.डी, मोटर गाडि़यों के पुर्जे आदि बनाए जाते हैं। दुनिया भर में हर साल 36 लाख टन बिस्फेनॅाल का उत्पादन होता है। 1996 में अमरीका के एक वैज्ञानिक फ्रेडरिक ह्वोम साल ने जाँच में यह पाया कि बिस्फेनॅाल-ए की संरचना मानव शरीर के हारमोन इस्ट्रोजेन जैसी है और इसकी छोटी-से-छोटी मात्रा भी शरीर में जाने से अति गम्भीर दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं। 1996 में फ्रेडरिक ने जैसे ही अपने शोध के नतीजे प्रकाशित किए उनके पास अमरीकी रसायन कम्पनी डाव केमिकल का एक अधिकारी पहुँच गया और उनके सामने यह प्रस्ताव रखा कि अगर वे बिस्फेनाल-ए पर शोध करना और छापना बन्द कर दें तो कम्पनी उन्हे मालामाल कर देगी। वैज्ञानिक फ्रेडरिक इसकी वजह से उनके प्रस्ताव को ठुकरा कर दूने जोश से अपने काम में लग गए। दुनिया के कई और मुल्कों के वैज्ञानिक भी इस काम में जुटे और बिस्फेनाल ए के मानव शरीर पर असर पर आज तक एक हजार से अधिक शोधपत्र छप चुके हैं। इस शोध से यह पता चला है कि बिस्फेनाल से स्तन कैन्सर, अण्डकोष का कैन्सर और अन्य तरह के कैन्सर हो सकते हैं। इसकी वज़ह से महिलाओं और पुरुषों के प्रजनन तन्त्र पर भी गम्भीर असर पड़ता है। इसके साथ ही बिस्फेनाल-ए की वज़ह से जन्मजात विकृतियाँ, रोग प्रतिरोधक तन्त्र की गड़बडि़याँ, दमा, डायबिटीज़, दिल के रोग और लीवर की बीमारियाँ होने की सम्भावना होती है। बिस्फेनाल-ए के बारे में सबसे खतरनाक बात यह है कि इसकी छोटी से छोटी मात्रा भी घातक हो सकती है। कितनी मात्रा के नीचे बिस्फेनाल-ए सुरक्षित हो सकती है, यह आज तक निर्धारित नही किया जा सका है। कई देशों में इस रसायन के इस्तमाल पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। जापान, फ्राँन्स, बेल्जियम, डेनमार्क, ब्रिटेन, स्वीडन, कनाडा तथा कई और देशों में इस अत्यन्त खतरनाक रसायन पर पाबंदी लगा दी गई है।

हमारे पास क्या विकल्प हैं?
अब सवाल ये उठता है कि रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले इन ज़हरीले रासायनिक उत्पादों की जगह हम क्या इस्तेमाल करें?
पहली नज़र में हमें कोई विकल्प दिखता नहीं। लगता है हानिकारक रसायनों के बग़ैर दिनचर्या सम्भव नहीं है, पर आस-पास नज़र दौड़ाने पर, थोड़ी छानबीन से हमें पता चलता है कि ये विकल्प हमारे चारों ओर मौजूद हैं। बस उन्हें अपनाने की ज़रूरत है। हम पाएँगे कि हमारी दादी-नानी द्वारा बताए गए नुस्ख़े आज भी पहले की तरह ही सुरक्षित एवं कारगर हैं:-
पीने के पानी की बोतल:-
- स्कूली बच्चों के लिए प्लास्टिक से बनी बोतलों का इस्तेमाल न करके स्टील, ताँबे और काँच की बोतलों का इस्तेमाल करें।
- घरों में प्लास्टिक के बर्तनों और अद्दियों में पानी भरकर न रखें, इसके स्थान पर मिट्टी या धातुओं के बर्तनों के इस्तेमाल करें।
- ताँबे के बर्तनों के इस्तेमाल से पीने का पानी जीवाणुरहित भी रहता है।